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Wednesday, March 10, 2010

.......शाबाश

क्रिकेट गेंद और बल्ले का खेल है......क्या सच में तेज खेलने वाले खिलाड़ी ज्यादा स्तरीय होते हैं?
एक प्रदर्शन बंगलादेश के खिलाड़ियों ने किया,भले ही यह एक प्रथम श्रेणी का मुकाबला था,अंतर्राष्ट्रीय नही,लेकिन इन बल्लेबाजों की तारीफ जरूर होनी चाहिए...क्यूंकि सामने वाली टीम इंग्लैंड की राष्ट्रीय खेल की टीम थी.
देखें स्कोरकार्ड .......
सलाम डॉलर महमूद और शुवागोतो होम

Monday, March 8, 2010

लौट चलो.......

पैसे में बड़ी ताकत होती है.......अब तक मैं यही सोचता था कि कुछ इस दुनिया में ऐसा जरूर है,जिन्हें पैसे से नही खरीदा जा सकता ,जैसे भगवान्,भावनाएं,भाईचारा इत्यादि......लेकिन मैं जो कुछ देखता और सोचता हूँ तो यही पाता हूँ कि धीरे धीरे बिकाउपन में इजाफा ही होता जा रहा है...
जो मंदिर जितना ही भव्य है उसकी महिमा उतनी ही बड़ी होती है.....
धनवान बोले तो तुरंत गहरा असर होता है,गरीब जिंदगी भर चीखता चिल्लाता मर जाता है.
कभी एक ऐसा भी दौर था जब हमारे देश के लोगों को सीख भी दी जाती थी कि हॉकी के मैदान में जितना पसीना बहाओगे,युद्ध के मैदान में उतना कम खून बहेगा.
रग रग में,हमारी धडकनों में,सोच में बसी हुयी थी हॉकी......हमने हॉकी में दुनिया को झुकाया,खेलों के सबसे बड़े महाकुम्भ में राष्ट्र का सीना गर्व से चौड़ा किया,और इतनी बार किया जितना किसी देश ने आज तक नही किया, जो जो बन सका सब किया.लेकिन हमने बदले में क्या किया?
हमारे दिल में हॉकी की धडकनें जब बिक गयी,क्रिकेट के खेल में जैसे-जैसे ताबड़तोड़ पैसा आना शुरू हुआ,बस भावनाएं भी बिकने लगी.
आज हमारा दिल क्रिकेट के लिए धड़कता है,जितना तालियाँ एक भारतीय हॉकी खिलाड़ी को विश्व कप के मैच में गोल करने पर मिल रही थी,उससे ज्यादा तालियाँ शायद बिकाऊ आई पी एल के पूर्णतया व्यवसायिक मैच में एक चौका लगने पर बजती हैं.
आज समस्या यह है कि लोग आखिर क्यूँ हॉकी देखना नही चाहते,खिलाड़ी भी हॉकी को अपना करियर बनाने से कतराने लगे हैं....
क्यूंकि हम लगातार हॉकी में हार रहे हैं????
मैं नही मानता,क्रिकेट विश्व कप २००७ में हम पहले दौर में बाहर हो गए तो क्या उसकी लोकप्रियता कम हुयी???१९७५ और १९७९ के विश्वकप में भी हमने कोई तीर नही मारा था...और उस दौरान हमारी हॉकी टीम वाकई बहुत अच्छा खेली थी,लेकिन उस वक़्त भी क्रिकेट टीम के हर सदस्य का नाम लोगों की जुबान पर था,और हॉकी टीम के खिलाडियों के चेहरे अब कम लोगों को ही याद होंगे......और हॉकी खिलाडियों का किया धरा भी लोग जल्दी ही भुला देते हैं.
आधुनिक युग है,जहां पैसा है,वहाँ आकर्षण है....चरित्रहीन सुन्दर चंचला भी चित्त का आकर्षण करने में कोई कमी नही छोडती.
एक खेल है,जहां मेहनत कम और शोहरत ज्यादा है,उलटे एक राष्ट्रीय खेल है जिसमे ज्यादा मेहनत और अच्छी किस्मत भी जरूरी होती है,और शोहरत तो खैर ध्यानचंद की भी क्रिकेट के चमकते चेहरों के सामने मद्धिम की जाने लगती है.
आज के समय में लोग अपना करियर बनाने के लिए,पैसा कमाने के लिए क्रिकेट खेलने लगे हैं,और क्रिकेट खिलाड़ी मजे में जिंदगी गुजार रहे हैं.
और हॉकी खिलाड़ी अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर देश का सर ऊँचा रखने का अथक प्रयास कर रहे हैं,लेकिन हम शायद ऐसा होने देने की राह में सबसे बड़ी बाधा खड़ी कर रहे हैं.
हाँ,सच में हम हैं परेशानी,क्रिकेट में बहुत पैसा है,उसने हमारी भावनाएं भी खरीद ली,जहां पैसा है वहाँ आकर्षण है,क्रिकेट में भी पैसे सिर्फ रन बनाने से नही आते,पैसे तो हमारी वजह से आते हैं,क्यूंकि हम पागल हैं इस खेल के पीछे,हम देखते हैं,इसीलिए क्रिकेट बिकता है,हमारा दिल क्रिकेट के लिए धड़कता है,इसीलिए क्रिकेट बिकता है..
और क्रिकेट बिकता है इसीलिए अपनी हर तरह की सीमित विशेषताओं के बावजूद हमारे दिल और दिमाग पर इस कदर छा चुका है की हम कभी ऐसा सोच ही नही पाते की महान खिलाड़ियों पेले, ब्रैडमैन की तरह एक निर्विवाद अतुलनीय खिलाड़ी ध्यानचंद भी कभी हमारी राष्ट्रीय हॉकी टीम का हिस्सा रहे थे......और अद्वितीय गर्व एवं पराक्रम से ओत-प्रोत जितने अवसर हमें इस खेल ने दिए हैं,उनका उपकार हमने यूँ ना भुला दिया होता.खेलों की दुनिया में भारत का रत्न कहलाने का पहला हक़ अगर किसी का है तो वो सिर्फ और सिर्फ ध्यानचंद हैं,वरना शौर्य शोहरत के आगे घुटने टेक कर बेबसी का रोना रोता रहेगा,जो आज के युग में संभव होता दिख रहा है.
आज भी जो ख़ुशी हमारी हॉकी टीम अगले ओलम्पिक में स्वर्ण पदक लेकर दे सकती है,क्या क्रिकेट का कोई लम्हा हमें इतना खुशनसीब महसूस करने का मौका दे सकता है?
हम बाजार हैं,हम हैं वो लोग जिन्होंने पैसे की चमक देख कर जबरन अपना मुख हॉकी से मोड़ लिया....
आज हमारा राष्ट्रीय खेल तड़प रहा है.....जमाना बदल गया है पैसे के आगे हर चीज बिकती जा रही है,फिर हम हॉकी में जीत क्यूँ नही खरीद सकते?
देखो क्रिकेट में भी पैसा पूरा फूँक दिया तभी तो,लगातार क्रिकेट का जूनून बढ़ा,खिलाड़ी खेलने के लिए आगे आये,और करियर की चिंता छोड़ कर क्रिकेट को सारा समर्पण दिया और नंबर एक तक पहुंचे.
ऐसा ही हॉकी से साथ भी करने की जरुरत है.
तो हम जहां जायेंगे,लोग हमें खरीदने की कोशिश करेंगे,कितना अच्छा होता यदि हम सब अपनी बिकी हुयी भावनाओं को फिर बिकने का मौका दें,और इस बार उसका साथ दें जो हमारे समर्थन के अभाव में सिसक रहा है......घबराइए नही.....हमें किसी कांट्रेक्ट के जरिये नही खरीदा गया जो क्रिकेट वाले रविन्द्र जडेजा की तरह हम पर किसी तरह का कोई प्रतिबन्ध लगा सकें.
हम अपनी स्वेच्छा से जिसे चाहे अपनाएं...लेकिन वो लम्हा महसूस करने की ख्वाहिश रखना और ना रखना ही सबसे अहम् है.
हम जुड़ेंगे तभी हमें सीने को उसी गर्व के साथ चौड़ा करने का मौका मिलेगा जो हमारी पिछली पीढ़ी ने हर उस बार महसूस किया,जब जब हॉकी टीम ने अपनी चमक बिखेरी..
मैं उस लम्हे को तहे दिल से महसूस करना चाहता हूँ,उस भेड़चाल से मन उब गया है,जहां हर ताली पे सर ऊँचा होता है....और अगले दिन सर छुपाने से भी नही छुप सकता....
हमारा राष्ट्रीय खेल शर्मिंदा हैं,क्यूंकि हम उसे सर उठाने नही देते......मौका दीजिये ताकि....ध्यानचंद को ऐसा ना महसूस हो कि उनके देशवासियों ने उनके साथ इतनी बड़ी गद्दारी की और उन्हें हिटलर का प्रस्ताव अस्वीकार करना अपनी मूर्खता ना लगने लगे.
अतः कृपया कर हॉकी को वो सब कुछ देने की कोशिश कीजिये जो आप क्रिकेट को देना चाहते हैं या देते हैं...आप की जेबों पे कोई फर्क नही पड़ेगा,लेकिन दूसरो की जेब जो क्रिकेट पे ढीली होती रही है....शायद हॉकी पे ही रहम खाए और,और जब हम सब साथ होंगे तो क्यूँ नही फिर बरसेगी खुशियों की सौगात.
और सोचिये महसूस कीजिये उस लम्हे को जब हमारे खिलाड़ी सोने का तमगा लगाये दुनिया के सबसे बड़े खेल महाकुम्भ में पूरी दुनिया के सामने सीना ताने खड़े होंगे और बैकग्राउंड में शान के साथ बजता रहेगा.......'जन गन मन अधिनायक..............'
क्या आपको ये मंजर अच्छा नही लगेगा?
तो फिर क्या सोच रहे हैं,हर किसी को उसका उचित स्थान देना चाहिए तो हम हॉकी को क्यूँ दिल से निकाले हुए हैं,चलिए वापस अपने घर चलें.
क्रिकेट का अपना अलग रोमांच है,लेकिन हमें हॉकी के साथ ये बदसलूकी नही करना चाहिए.
आइये......अपने खिलाड़ियों को भी महान कहलाने का मौका दें.....और देश का सर सम्मान से ऊपर उठाने का मौका दें.
हॉकी को अपने दिल में वही जगह दें,जो उसे मिलनी चाहिए.

Tuesday, March 2, 2010

क्या आपको पता है.....राहुल द्रविड़ एकमात्र ऐसे क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों के खिलाफ कम से कम १० कैच लिया है.

शाबाश सचिन


सलाम सचिन,दोहरा शतक जमाकर तुमने अपनी ऊँचाई और बढ़ा ली,देश का नाम भी गौरव से ऊपर बढाया.
मेरी तरफ से भी बहुत सारी बधाई तुम्हें,तुमने खेल जगत में हमारा नाम ऊँचा किया,अब तो क्रिकेट ओलम्पिक में भी शामिल हो जाएगा,अल्लाह से दुआ करता हूँ कि तुम तब तक खेलो ताकि हमारा दांव भारी पड़े पदक जीतने के मामले में.आम आदमी की पहुँच से दूर,महामानवीय प्रदर्शन जैसा तुम कर रहे हो करते रहो,ये ख्वाहिश है हमारी,अगर उम्र ना पड़े तुम पर भारी.
तुम बहुत बड़े खिलाड़ी हो,और मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ.
मैं चाहता हूँ कि तुम्हें भारत रत्न मिले,बेशक मिले ,लेकिन साथ ही साथ मैं ये चाहता हूँ कि तुम वैसा ही करो(देखें),जैसा अबुल कलाम आजाद ने किया,जैसा हाल में आचार्य जानकीबल्लभ शास्त्री ने किया,और मुझे तुमसे ये उम्मीद है कि तुम एक ऐसा उदाहरण पेश करो,जो ना सिर्फ तुम्हें एक महान खिलाड़ी बल्कि एक महान भारतीय का प्रतीक बना दे.
किसी भी ज्वलंत मुद्दे,गरमाए माहौल को,शोहरत के उफान को,शौर्य के परवान को भुनाने में माहिर कुछ स्वार्थी लोग,यूँ कहे तो राजनेता,आजकल तुम्हें भारत रत्न से नवाजने की मांग कर रहे हैं,क्यूंकि तुम तो भारत के रत्न हो निस्संदेह,लेकिन ये लोग चढ़ते सूरज को दिया दिखाकर मन्नतें पूरी होने का ख्वाब देख रहे हैं.(देखें)
अब सिफारिश कोई भी करे,तुम्हें तो भारत रत्न मिलना ही है.
लेकिन क्या तुम्हें खुद नही लगता कि अभी तुम्हें ये पुरस्कार नही मिलना चाहिए,इसलिए नही कि तुम इसके योग्य नही हो,बल्कि इसलिए कि अभी कुछ भारतीय ऐसे भी हैं,जो तुमसे ज्यादा काबिल हैं/थे,लेकिन उनकी सिफारिश तक करना मतलबियों ने उचित नही समझा,अब कौन डूबती नैया में सवारी करे,और वैसे भी इन लोगों की सिफारिश कितनी पूर्वाग्रह से ग्रसित है,अगर भारत रत्न प्राप्तकर्ताओं की सूची देखो तो शायद कहीं स्पष्ट हो,इन जैसे लोगों ने इंदिरा गांधी को सरदार बल्लभ भाई पटेल,भीमराव अम्बेडकर,मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से पहले भारत रत्न दिला दिया,और तो और सरदार पटेलजी को तो राजीव गाँधी के साथ ही भारत रत्न के लायक समझा गया.
अब क्या ये कुछ अटपटा नही लग रहा है की जिन लोगों ने ध्यानचंद जैसे निर्विवाद रूप से हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी के इतिहास के सर्वकालीन महानतम खिलाड़ी को भी इस पुरस्कार के योग्य नही समझा,वे तुम्हें भारत रत्न दिलाने की मांग कर रहे हैं,क्या तुम्हें ये नही खटकता?
सोचो,ध्यानचंद का जो दबदबा हॉकी के मैदान में था,उसके प्रभुत्व को दूर दूर तक कोई नाम चुनौती दे सके ऐसा नजर नही आता.खुद ब्रैडमैन ने ध्यानचंद जी से कहा था'You score goals like runs in cricket.'
और रही बात तुम्हारी तो ऐसे कई नाम हैं क्रिकेट की दुनिया में,जो शायद तुम्हारे प्रभुत्व को चुनौती दे सके,और कुछ नाम ऐसे भी हैं,जिनके सामने हम रिरियाते हुए तुम्हारे बड़प्पन के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं,जैसे ब्रैडमैन,सोबर्स,बैरी रिचर्ड्स,विव रिचर्ड्स इत्यादि(नाम और भी बहुत हैं,रूचि हो तो पूछ लें).
अब अगर ये लगे कि ये सभी तो विदेशी हैं,क्रिकेट की दुनिया में हिन्दुस्तान के सबसे बड़े खिलाडी हो तुम,लेकिन अगर रिकॉर्ड का आइना अलग रखा जाए तो तुम्हारी श्रेष्ठता हमेशा विवाद का विषय रहेगी,इसमें कोई शक नहीं की तुम महान हो,और दुनिया के सर्वकालिक महान क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक हो. लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ भरतीयों को ही इस सम्मान के लायक समझा जाता हो.भारत रत्न ऐसा सम्मान है जिसे हमेशा अपने सर के ऊपर रखा जाता है,और मैं चाहता हूँ कि जब तुम क्रिकेट की दुनिया को एक खिलाड़ी के रूप में अलविदा कहो तो तब तुम्हें ये सम्मान मिले,क्यूंकि मैं नही चाहता कि कभी भी भारत रत्न सर झुकाए,बल्ला घसीटते हुए मैदान से बाहर आये.मान लो कल को तुम क्रिकेट टीम के कोच बन गए,और भगवान् ना करे कभी ये टीम बुरी तरह हार गयी,तो फिर कोई भारत रत्न को बुरा-भला कहे तो कितनी चोट पहुंचेगी दिल को.
अतः हे सचिन,कृपा कर सम्मान की गरिमा को बचाए रखने की पुरजोर कोशिश करो,और ये सिर्फ तुम कर सकते हो.
तुमने अनेकों बार हमारा सर गर्व से ऊँचा उठाया है,लेकिन 'भारत रत्न' बन जाने के बाद अगर एक बार भी तुम्हारा बल्ला झुका तो क्या हम शर्म का अनुभव ना करेंगे?
अतः प्लीज अभी तुम उन लालायित लोगों कों शांत करने का प्रयास करो,और ख़ुशी ख़ुशी संन्यास लो,जब तुम्हारी मर्ज़ी हो.
और तब मैं भी ध्यानचंद के साथ तुम्हें भारत रत्न दिलाने की वकालत अपनी पूरी औकात से करूँगा.
एक बार फिर तुम्हें बधाई और ये शुभकामना कि तुम कभी भी अपना और देश का माथा झुकने ना दो,हमेशा नयी बुलंदी दो.
आमीन.

Wednesday, February 24, 2010

बस भी करो..........

कल अखबार में पढ़ा,कसाब की मेहमान नवाजी में अब तक ३९ करोड़ खर्च कर चुकी सरकार.
.........लेकिन जनता के हवाले सिर्फ महंगाई की मार.
मैं वाकई कभी कभी सोचता हूँ,क्या सच में कसाब के ऊपर होने वाला खर्च इतना ज्यादा हो सकता है?
कसाब को जिन्दा रखना हमारे लिए क्यूँ जरूरी है?
मानवाधिकार के रक्षकों के लिए कसाब के कृत्य क्या अब भी मानवीय लगते हैं?
लेकिन उसे जिन्दा रखना बहुत जरूरी है,उसे जिन्दा रखेंगे तभी तो उस मामले से जुड़े हुए तमाम लाभार्थी लाभान्वित होंगे.
आप आखिर उससे क्या उगलवा लेंगे,जो आपको पता नही है.
आखिर क्यूँ कर इतना इंतजाम किया जा रहा है,उस कातिल के लिए,जिसने हमारे जिगर को छलनी कर दिया...
मानवता खुद लज्जित हो जाती है,इनके गंदे कारनामो से,और उन वहशी इरादों को पनाह देने वाले को इतनी महँगी जिंदगी दिया जाना उस देश में,जहां अर्थ के अभाव में लोग घुट घुट कर जीने को  मजबूर हैं,उनके मुंह पर बेशर्मी भरा एक तमाचा नहीं तो और क्या है?
लेकिन तुम उसे जिन्दा रखोगे.
क्यूंकि तुम टैक्स नहीं देते ना,तुम तो लोगो के मेहनत से जमा किये टैक्स पर ऐश किया करते हो.
जो रोटी रोटी का पैसा जोड़ता है ,उसके लिए ३९ करोड़ पूरी जिंदगी का अनछुआ ख्वाब बन कर रह जाता है.
शहीद सुर्ख़ियों में तभी तक रहते है,जब तक अगला शहीद ना हो जाए,लेकिन मीडिया और सरकार के रहमोकरम से ये दरिंदा अब तक शोहरत बटोर रहा है,और ऐसी जिंदगी जी रहा है,जो उसने कभी सोची भी नहीं होगी,उसके अपने देश में आज लोग दाने दाने को मोहताज हैं.
पूछो उनसे जिसने इन हमलों की पीड़ा महसूस की है,क्या अंजाम हो इस कातिल का,और सुना दो फैसला......
यह बेशर्म कानून के मंदिर में साफ़ झूठ बोलता है और मुस्कुराते हुए बाहर आता है,फिर भी तुम्हें शर्म नहीं आती.
शर्म करो,मुझे तो आ भी रही है....कि हाय मेरे देश के भाग्य विधाताओं,किसी जरूरतमंद के हक़ का हिस्सा काटकर अब तो दरिन्दे का पेट भरना बंद करो..
जिन्दा रखना ही है तो तामझाम पे तो रोक लगाओ,जिस रकम के लिए आम आदमी जिंदगी भर जोर लगाकर थक जाता है,उसे कम से कम एक आतंकवादी के नाम पे तो मत लुटने दो.
यूँ ही किसी घोटाले के नाम पे खा लो,वैसे भी अब तक तुम्हारी दौलतों में आशातीत उफान आया तो कोई पूछने नहीं गया.
अब भी नहीं पूछेगा,बस उस दरिन्दे को थोडा कम खिलाओ.
तुम्हारे इस उपकार से आतंकवाद की कोई जड़ कमजोर होती नजर नहीं आ रही.
तरस खाओ,उन पर जो पैसे के अभाव में रोटी को तरसते रहते हैं,और वो दरिंदा तुम्हारी दया से बोटियाँ नोच रहा है,मुंह चिढाते हुए.

Friday, February 19, 2010

चलते रहिये

बेतिया शहर,भारत-नेपाल सीमा के नजदीक बिहार के अंतिम सिरे पे स्थित है..कहने को यह बहुत बड़ा शहर नही है,लेकिन यदि कभी दिन में यहाँ की ट्रेफिक में फंस जो गये,तो आप भी मान जाओगे की सुविधा भले ही यहाँ महानगरो वाली ना हो लेकिन असुविधाएं पर्याप्त हैं..
और यहाँ की पुलिस भी आये दिन खुद पहल कर इस व्यवस्था कों सँभालने का जिम्मा उठती है.....ह़र एक दो महीने में कभी एक बार मैं पुलिस की वैन चौराहे पे खड़ी देखता हूँ,मेरे कई परिचित बिना ड्राइविंग लाइसेंस के धड़ल्ले से घूमते हैं,हेलमेट लगाना तो शायद उन्हें कभी हजम ना हो,और सही कहूं तो वो इसे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं.
तो मेरे उन मित्रो में से कितने कई बार बिना कागजातों के गाडी चलते पाए गए,लेकिन अगले दिन वे अपनी बाइक पे उसी रोड पर हमेशा चलते ही रहते हैं,और अगले दिन क्या फिर हमेशा ही यूँ ही घूमते रहते हैं,और तब रोकने वाले भी नदारद होते हैं.
मुझे ये भी नही पता की हर बार पकडे जाते हैं फिर भी कैसे बच जाते हैं,शायद इन्ही परिस्थितियों से गुज़र कर किसी ने ये मूल मंत्र दे दिया लोगो कों'मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी..........."
अब बताओ भला गांधीजी से बढ़कर किसकी मजाल जो उनका आदेश ना माने,मान जाते हैं सभी.
वैसे बाकी दिनों में भी कुछेक चौराहों पर पुलिसिये मुस्तैद रहते हैं,लेकिन भारी वाहनों की आवाजाही दिन भर निर्बाध चलती रहती है,और आये दिन भारी वाहन दुर्घटना का कारण बनते हैं,और दिन में जब शहर की सडकें व्यस्त रहती हैं,तब वाहनों का आवागमन यातायात के नियमो से शायद बंद रहना चाहिए,लेकिन पुलिसकर्मी के मौजूद रहने के बावजूद भारी वाहन कैसे दिन भर शहर की सड़कों पे दौड़ते रहते हैं,ये तो सोच के परे नहीं है.
कभी अचानक अधिकारीयों का मन होता है तो सड़क के किनारे की सारी अवैध दुकानें उजाड़ दी जाती हैं,लेकिन सिर्फ कुछ ही दिनों बाद वे सभी अपनी जगह पे पुनर्स्थापित हो जाते हैं.ये भी सड़क जाम का एक बड़ा कारण है.
अच्छा होता यदि बार बार उजाड़ने की बजाय इस मामले का एक बार समाधान हो जाता.
खैर जब किसी बड़े नेता का आगमन होता है तो पुलिस हमेशा मुस्तैद नजर आती है ,और कहीं किसी तरह का जाम नही होता.
काश ये नेता रोज आते,कम से कम जाम तो नहीं लगता.
खैर जब राजधानी में ये समस्या दूर नही हो पाती तो हमारे यहाँ तो सोचना ही बेकार है.

Thursday, February 4, 2010

राज करने की नीति-राजनीति

अब वक़्त आ गया है,जब उत्तर भारतीयों का विरोध कर रही शिवसेना और मनसे के खिलाफ कांग्रेस आवाज़ उठाये॥
आखिर सत्ता की शक्ति में भी जो आवाज इतने दिनों से जबरन दबा कर रखी हो,उसे सही वक़्त पर बाहर आना ही था,और अब वक़्त आ गया है,जब बिहार में चुनाव होने वाले हैं,और सिर्फ यही एक मुद्दा है जो केन्द्रीय सत्ता को बिहार में एक आशा की उम्मीद दे सकता है(वैसे ये उम्मीद भी नाकाफी ही है).......और आग में घी डालने के लिए तो ठाकरे खानदान हमेशा से तैयार बैठा है।
और जब ये आग पूरी तरह भड़केगी तो,निश्चित रूप से फायदा कांग्रेस का ही होगा।
वैसे हवा में जहर तो बहुत पहले से घुल रहा है,युवराज को इसकी भनक आज लगी है,इतने भोले नही हैं वो,और उनके चमचे भी...वो तो बस अवसर के ताक में बैठे रहे।
मुझे ये समझ में नही आता,कि केंद्र में आपकी सरकार है,महाराष्ट्र में आपकी सरकार है,फिर अभी तक किसकी राह देख रहे थे राहुल बाबू?
प्रधानमंत्रीजी ने तो खैर इतना भी जरूरी ऩही समझा,सब कुछ सरकार के हाथ में पहले भी था,जो अब है,लेकिन इंतज़ार था तो सिर्फ इस बात का कि राहुल जी मुँह खोले,और फिर कार्रवाई हो,ताकि श्रेय एक बार फिर होनहार युवा नेता,एकमात्र उन को ही मिले॥
राहुल जी ने राष्ट्रीय राजनीति में छाने से पहले जमीनी तौर पर कुछ नही किया,मुझे नही लगता कि कभी स्थानीय निकाय के चुनावों में एक मतदाता के रूप में भी वे सम्मिलित हुए हों(अगर हुए तो कृपया सन्दर्भ देने कि कृपा करेंगे)....हाँ राजनीति के खानदानी पेशे में कदम रखते ही कांग्रेस के सभी जगमग सितारे धुंधलाने लगे,और स्वामिभक्ति दिखाते हुए बड़े कद वालों ने बौना बनना स्वीकार कर लिया,कायल हूँ मैं आपकी स्वामीभक्ति के कांग्रेसजनों ।
राहुल जी सच की राह पर चलते हैं,वे ऐसे किसान हैं,जिसे हल चलाना तो दूर,पकड़ना भी नही आता.वो हमारे देश के ऐसे कर्मठ और जूझारू नेता हैं,जिन्हें राजनीति में आने से पहले देश के बारे में उतना ही पता था,जितना मुझे अजर बेजान के बारे में,तो उन्हें देश के हर भाग में घुमाया जा रहा है,सांप भी मर रहा है,और लाठी भी मजबूत हो रही है.....देश वाले भी सोच के मस्त हैं कि भावी शासक हमारे बारे में बहुत चिंतित हैं,जबकि ऐसा नही है,होगा भी तो मुझे नही लगता।
हाल में राहुल जी बिहार आये,उन्होंने कहा बिहार की ये हालत इसीलिए है कि कांग्रेस की सरकार नही है राज्य में,कांग्रेस में वही आगे बढेगा जिनके रिश्तेदार राजनीति में नही हैं,अब नेता जमीन से निकलेंगे,हेलीकाप्टर से गिराए नही जायेंगे........और भोली जनता खो गयी इन मीठी बातो में....
लेकिन ये बात खटक रही है,कि आप किस जमीन से आये हो?हमने तो जब भी देखा आप अपने पार्टी के सर आँखों पर ही दिखे.....और मैंने ही क्या किसी ने भी आपको टिकट के लिए परेशां होते नही देखा....आपकी तो सीधी हाई क्लास एंट्री हुयी थी ना....वो क्या कहते हैं..."धमाकेदार".
और मुझे अब तक के अपने ज्ञान से यही पता लगा कि बिहार में सबसे ज्यादा दिनों तक कांग्रेस ही सत्ता में रही है.....लेकिन जाने दो,जो कह दिया मान गए,अब तो आपको जाना चाहिए ना.....जब तक आप राजनीति में बने रहोगे,कोई दूसरा राजनीति में आगे कैसे बढेगा?....सिंधिया साहब,सचिन पायलट साहब,देवड़ा साहब,सब लोग क्या इसीलिए स्टार हैं कि उनके रिश्तेदार राजनीति में नही थे?
या खुद आप?
तो क्यूँ नही अपनी कथनी को सच कर दिखाते हैं,मार्ग प्रशस्त कीजिये उनके लिए जिन्होंने खानदानी पेशे के रूप में नही,बल्कि देश के लिए राजनीति में आने का दुस्साहस किया हो॥
लेकिन आपके सिब्बल साहब तो खुद कहते हैं कि आगे बढ़ने के लिए जी हजूरी जरूरी है...मेरे ख्याल से खुद के आगे बढ़ने के लिए जी हजूरी के बजाय देश के लिए उन्होंने कुछ करने की कोशिश की होती तो मैं भी उनका प्रशंसक होता.
छोडिये इन सब बातों को,बस अब आपसे यही उम्मीद लगाये बैठे हैं कि कभी देश की अन्य प्रतिभाओं पर भी आप भरोसा करें और आम युवाओं को भी आगे आने दें,अपने पीछे ना लगायें.पिछलग्गुओं की फ़ौज खड़ी करने से बेहतर है एक नेता को आगे आने का मौका दें.
खैर ये मेरी गलती नहीं कि वास्तविक नेता आपकी पार्टी में जाने से कतराते हैं,क्यूंकि टॉप फ्लोर का पासवर्ड तो सिर्फ आपके नाम पर सेव है।
अगर आप नही सुनते तो देशवालो सुनो,जो आपके बीच पला है,बढ़ा है,सिर्फ उसको चुनो।
सिर्फ सुनो मत,कभी कभी सोच भी लिया करो.
दलितों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले,खुद अपने लिए सत्ता के उच्च वर्ग में अघोषित आरक्षण लिए बैठे हैं,उन्हें अपना हक़ मारने से रोको.जाहे जो भी बताया जाय,किया जाए,युवा का नाम लेकर युवाओं को बहलाया जाए,युवा कों आगे बढ़ने का मन्त्र राहुल जी की ऊँचाई बढ़ने के लिए ही सिद्ध किया गया है।
क्या कभी कांग्रेस ऐसे युवा को राहुल जी के आगे जाने देगी,जो वास्तव में योग्य हों,मुझे नहीं लगता की ये उन्हें किसी सूरत में स्वीकार होगा...
आगे बढ़ना है,देश को बढ़ाना है तो आगे बढिए,पिछलग्गू ना बनिए.


Tuesday, February 2, 2010

Missing GOD

I am not an atheist…..you can say I am a real firm believer in god,still I have some questions in mind, which needs more of logic than examples from religious literature,I am not here to challenge the existence of god,but to check if everything done in the name of god is really like what I think.
Whenever I assume god to create a world and sending lives in it….I use to ponder always.
If god is the only to grant and run lives in living beings ,then everyone must be connected with him, as there is only god who grants life, thus no one can live in the world without being blessed with his conscience.
But I see a lot of people, who does heinous crimes (hyena is also made by god in this way) disaffect several blessed with so called ‘good souls’.
Was there any compulsion in front of him to make cruel souls,or is he like a driver who only knows how to start a bike and then puts in on auto-pilot mode?
If not, then why doesn’t he governs the life of all after they tend to go in the direction of sins…..does he willingly want them to fall in the wrong way,or is he incapable of stopping them,……….If no,then why is he not bothered about it, or if yes, then Why he is considered omnipresent and most powerful,even more than what human can even think of?
When he made great minds to explore happiness for mankind,why does he allows the culprits to stay here to obstruct them from living in peace.
He certainly,if he does exist really, has not sent lives on earth to praise the lord every time, he would have loved to see people living happily and peacefully,to create a good model on earth. He must have not been happier after one devotes all their life only in praising the lord, living in religious places and living on what they get in the name of god.
If It is in the least of his desires, he would not have sent you on the earth to consume the earthly foods to praise him, he must had kept numbers of lives with him at his own place, If he has not allowed you to stay with him in the heaven and sent you on the earth, you must do your duties other than devoting this life to god against his will, He had rather sent you here to help in exploring new ideas……The god is god….you are not going to invent a more durable god or like this….If there is god, he will remain the god forever, he doesn’t need your garnishing.
Yes, but you get rewards for your devotion to god, you create a world of fear about him,some justifies it of being love too in their way,which helps you to live your life happily without ever being worried about the crops.Just think of those who are left deserted when weather decides the fates.
The ultimate reason behind our lives (even if God exists or not) is that we have to gain knowledge, promote it, help someone in need, to have a family, to promote lives rather than to sit on a mount of money(which injects the proud quotient replacing pride)…or to leave every duty in search of God.
Why don’t you understand If God really exists somewhere, he doesn’t want you to be glued with him,that’s why he sent you here on earth….but here too you are not obeying him.Do you feel you are making him happy to worship him for your life….
I know there are some references of god’s presence in the world, I am surely not going to challenge their validity. But I know it too that in no instance god ordered or wish the living souls to leave everything behind,and devote your life to pray for him.
I have read of Buddha,hindu mythologies,some of christian’s works,and have listened the audio version of quraan. Neglecting a specific religion’s view only is not the proper way to be secular.
I am not a recognized and noted thinker of the world, and maybe I can be taken lightly,But I say firmly here if there is any great scholar of religions,who can challenge me on my view here, are welcome to have a word here.
I too follow spirituality in my live and I have learned the very first lesson in my life, not to hate anyone, it is only the state of mind which is solely responsible for the actions.
Recently I have read a report published in “Fiji Sun” newspaper which reads ‘ in a jail,prisoners are being offered a short course on Christianity,in order to lead them to a peaceful life afterwards,and thus giving them a hope for life…..’the matter is that in real means its good to see it as a media of peace,in fact I think they should have been given option to choose from other religions too,but then again,the gods must had not separated parts to feed different religions too.In this case it is soothing to see smiles on dying faces.
The message of every religion and motto over God’s immense capacities is only to maintain harmony all over the world,but we get ready to fight and die for matters related to partitioned Gods….I ask,why?

Friday, January 8, 2010

मैं सोचता हूँ कि हर किसी को अपनी बात कहने और उसपर कायम रहने का पूरा अधिकार है.....लेकिन बार बार पाला बदलने वाले के लिए भी कोई विधान होना चाहिए...एक अरब की जनसँख्या है हमारी.,पढ़े लिखे हुए कई योग्य मनुष्य बेरोजगारी को बहुमत दिला रहे हैं......शायद जिन्हें सबसे उपयुक्त समझती है सरकार,उनसे हमेशा काम में चूक होती ही रहती है..यदि तमाम गलतियों से भरा हुआ तंत्र इतने सालों में खड़ा करना था तो फिर हर बार चयन प्रक्रिया का तामझाम क्यूँ?
अच्छा होता कि हर परिवार को क्रमानुसार कुछ अंतराल पे आर्थिक मदद दे दी जाती...देश तो वैसे भी अभी तक भगवन भरोसे ही चाल रहा है........यहाँ तो कम से कम गुणवत्ता से समझौता नही होता...यूँ भी अनुकम्पा भी कोई चीज होती है सरकार की.....
सदविचार तो बस पत्र पत्रिकाओं में देख कर दिल ठंडा करने की चीज बन कर रह गयी है.....
वैसे जनादेश में भी बड़ी ताकत होती है...वरना अभी तक सभी जग चुके होते।
वैसे आराम करना सब को अच्छा लगता है,मुझे भी...
वही कर भी रहा हूँ...
मेरे अभी तक के ज्ञान के अनुसार स्वार्थ का परचम सबसे ज्यादा राजतंत्र में लहराता है...लेकिन जनतंत्र के साथ तो जनता की स्वीकृति भी मिलने लगी है......
शायद आप इमानदारी से आयकर दे देते होंगे...गर्व का भाव...देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव...अपने दिल में लिए.....देश के लिए कुछ करने के लिए...और तभी आपको पता चलता है कि आपकी ही नही..आप जैसे हजारो देशवासियों के जमा किये कर का खर्च ऐसे दरिन्दे की आवभगत में किया जा रहा है.....जिसे जिन्दा देख कर सबकी सहादत पे अफ़सोस होता है.....अरे महापुरुषों कुछ ऐसा करो कि जो देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं,उनकी जिंदगी बची रहे.......जो हमें मौत की नींद सुलाने आये थे उन्हें नयी जिंदगी देकर देश पर कोई एहसान नही हो रहा।

Monday, November 2, 2009

छाला

पिछले हफ्ते एक हिंदी फिल्म देखी ...वाई.एम्.आई.(ये मेरा इंडिया)
बेहतरीन लगी..वास्तव में हम जो सिनेमाघरों में देखते हैं उसकी सीख को वही सीट पे छोड़ कर चले आते हैं...और बुराइयों को गले लगते हुए अपने जेहन में छिपाकर घर लाते हैं......
अगर समाज की बुराइयां सिनेमा से कुछ हद तक प्रेरित हो सकती हैं तो हम अच्छाइयों को गले क्यूँ नही लगाते?
हम क्यूँ कागज़ पर ही सिद्धांत बनाते हैं और जीवन भर एक सुखद संसार की कल्पना करते करते मर जाते हैं?
क्यूँ नही हम बड़े सपने देखने की जगह छोटे छोटे टुकड़े जोड़ते हैं,जो बिखरे पड़े हैं हर जगह,पर सर हमेशा ऊंचा रखने वाले उधर देखते भी नही?
देखो,वरना जिंदगी कांटे निकालने में ही गुजर जायेगी...